Monday, September 28, 2020

Mythology | Hindu Mythology | Who was Arjuna really? | Who was Karna really?

Who was Karna and Arjuna really?  


        दोस्तों, क्या आप जानते हैं? वास्तव में अर्जुन कौन था? वास्तव में कर्ण कौन था? कथाओ के अनुसार कृष्णा और अर्जुन नर और नारायण के अवतार थे।

परमेश्वर सदाशिव के तीन मुख्य रूप में से प्रथम भगवान श्री विष्णु के 24 अवतार हैं।


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भगवानविष्णु के 24 अवतार इस प्रकार हैं .1.आदि परषु, 2.चार सनतकुमार, 3.वराह, 4.नारद, 5.नर और नारायण, 6.कपिल, 7दत्तात्रेय, 8.याज्ञ, 9.ऋषभ, 10.पृथु, 11.मतस्य, 12.कच्छप, 13.धनवंतरी, 14.मोहिनी, 15.नृसिंह, 16.हयग्रीव, 17.वामन, 18.परशुराम, 19.व्यास, 20.राम, 21.बलराम, 22.कृष्ण, 23.बुद्ध और 24.कल्कि


नर नारायण ब्रह्माजी के मानस पुत्र धर्म और उनकी पुत्री मूर्ति के पुत्रो के रूप में अवतरित हुए थे .नर नारायण के कारण ही संसार में सुख एवं शांति का विस्तरण हुआ हैं।

जिस स्थल पर नर नारायण ने तपस्या की थी वहा पर आज बद्रिकाश्रम हैं। जो बद्रीनाथ में स्थित हैं वहा पर नर नारायण नाम के दो पर्वत भी हैं लोंगो के अनुसार वो पर्वत रूप में आज भी तपस्या कर रहे हैं। . कुछ दुरी पर ही केदारनाथ का मंदिर हैं जिसकी स्थापना नर नारायण ने स्वयं की थी।

नर नारायण और कर्ण अर्जुन से सबंधित कथा इस प्रकार हैं।

            दम्बोद्भव नामक एक राक्षस था। उसने 1000 वर्षो तक अपने आराध्य सूर्यदेव की आराधना की।उसकी कठोर तपस्या से भगवान सूर्य प्रकट हुए और दम्बोद्भव को वरदान मांगने को कहा। दंबोधव ने सूर्य देव से अमरत्व का वरदान देने की प्रार्थना की परंतु सूर्य देव ने कहा : " वत्स, अमरत्व का वरदान देना मेरे वश में नहीं हैं अतः कोई और वरदान मांगो"

 इस पर दम्बोद्भव ने सूर्य देव से कहा " हे सूर्यदेव ! मैंने आपकी सहत्र वर्षो तक तपस्या की हैं तो आप कृपया मुझे सहत्र कवच की सुरक्षा प्रदान करे और उस कवच को केवल वही तोड़ पाए जिसने सहस्त्र वर्षो तक तपस्या की हो और जो भी व्यक्ति  इस कवच को तोड़े उस व्यक्ति की उसी क्षण मृत्यु हो जाये। " 


        सूर्यदेव को ज्ञात था की दम्बोद्भव इस वरदान का दुरूपयोग अवश्य करेगा परंतु सूर्यदेव तपस्या का फल देने को विवश थे इसीलिए सूर्यदेव ने दम्बोद्भव को यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही दम्बोद्भव आतंक मचाने लगा। 

दम्बोद्भव के आतंक से परेशान होकर ब्रह्मा के मानस पुत्र धर्म की पत्नी मूर्ति ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। देवी मूर्ति की प्रार्थना पर भगवान विष्णु में उनके गर्भ से नर नारायण के रूप में जन्म लिया जो  दो शरीर और एक आत्मा थे।

समय के साथ दोनों भाई बड़े हुए। जब दोनों भाइयो को दम्बोद्भव के बारे में ज्ञात हुआ तो दोनों भाइयो ने दम्बोद्भव का वध करने का निश्चय किया। 



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            एकबार दम्बोद्भव नर नारायण के राज्य में आया तब अपनी तरफ एक तेजस्वी मनुष्य को आते देख भयभीत हो गया। बाद में उस तेजस्वी युवक के दम्बोद्भव से कहा में नर हूँ और में तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ।


दम्बोद्भव तेजस्वी युवक के इस बात से आश्चर्यचकित हुआ उसने युवक से कहा . " क्या तुम्हे ज्ञात हैं की में कौन हूँ? मैं सूर्यदेव के सहत्र दिव्य कवच से सुरक्षित हूँ और मेरा कवच केवल वही तोड़ सकता हैं जिसने सहत्र वर्षो तक तपस्या की हो।और यदि तुमने  कवच को भेद भी दिया तो तुम्हरी भी मृत्यु हो जाएगी। "

               दम्बोद्भव की यह बात सुनकर नर बोले : " इसकी चिंता तुम मत करो। मैं और मेरा भाई दो शरीर और एक आत्मा हैं। मेरा भाई नारायण मेरे बदले तपस्या कर रहा हैं और में यहाँ तुमसे युद्ध करने आया हूँ। फिर नर और दम्बोद्भव के बीच में युद्ध प्रारंभ हुआ। 

दम्बोद्भव यह देखकर आश्चर्यचकित हुआ की नारायण के तप से नर की शक्ति बढ़ती जा रही थी। सहस्त्र वर्षो का समय समाप्त होते ही नर ने दम्बोद्भव का एक कवच भेद दिया .परंतु सूर्यदेव के वरदान के अनुसार कवच को भेदते ही नर की मृत्यु हो गई।

        अगले ही क्षण दम्बोद्भव हूबहू नर की तरह दिखने वाले एक और तेजस्वी युवक को आते देख आश्चर्य में पड गया दंबोधव सोच में पड गया की मैंने अभी इसका वध किया हैं तो फिर से जीवित कैसे हो गया ? 

बाद में दम्बोद्भव युवक को नर के शव के निकट जाते देख समाज गया की वो युवक नर का भाई नारायण हैं। 

            यह देख दम्बोद्भव हसने लगा और नारायण के सामने नर की मृत्यु पर मज़ाक करने लगा। यह देखकर नारायण मुस्कुरए और नर के कान में कोई मंत्र पढ़ा।

नारायण के मंत्र पढ़ते ही नर पुनर्जीवित हो उठे और उसके बाद नर तप करने चले गए और नारायण दम्बोद्भव से युद्ध करने लगे। इसी क्रमानुसार नर और नारायण ने मिलकर दम्बोद्भव के 999 कवच भेद दिए।

            अंतिम कवच जब शेष था तब दम्बोद्भव सूर्यदेव की शरण में चला गया। नर और नारायण भी उसका पीछा करते हुए सूर्यलोक पहुंचे। अपने शरण में आये अपने भक्त दम्बोद्भव को सुर्यदेव ने अपने तेज का एक अंश बनाकर स्वयं में समा लिया।

यह देख नारायण ने सूर्यदेव को शाप दिया की " हे सूर्यदेव ! आप इस राक्षस की रक्षा कर इसे अपने कर्मफल से बचा रहे हैं अतः आप भी इसके भागीदार होंगे और द्धापरयुग में आपको भी इसका फल भोगना होगा।


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              इसीलिए महाभारत में सूर्यपुत्र कर्ण एक ओर सूर्य के सामान तेजस्वी था। तो दूसरी ओर उसने द्रौपदी का अपमान और दुर्योधन के अधर्म का साथ देने जैसे अपकर्म किए। 

क्योकि कर्ण के शरीर में भी नर नारायण की तरह दम्बोद्भव की आत्मा और सुर्यदेव का अंश था। और नर और नारायण इस बार कृष्णा और अर्जुन के रूप में थे. । 

        इसी कारण से इद्रदेव ने कर्ण के उसका कवच और कुण्डल मांग लिए थे। क्यूंकि अगर इंद्रदेव ऐसा ना करते तो दंबोधव को मिले वरदान के कारण जैसे ही अर्जुन कर्ण के कवच को भेदते उसी क्षण अर्जुन की मृत्यु हो जाती। 

अतः कवच न होने कारण ही अर्जुन के लिए कर्ण का वध संभव हो पाया। 

हम आशा करते हैं की आपको यह लेख पसंद आया होगा .


Thursday, September 24, 2020

Panchavarnaswamy temple | Time travel | Is it possible to travel back in time ? | Ancient India

Time Travel | Is it possible to travel back in time ?

       
         दोस्तों , अगर आप के पास Time travel की सुपर पावर होती तो कैसा लगता? अच्छा ही लगता .....क्यों नहीं ...भला !!..जब चाहे ....जहा चाहे....जा सकते ....पर ऐसा संभव नहीं.... बिता वक़्त बदला नहीं जा सकता और भविष्य में क्या होगा ये कोई नहीं जानता।


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लेकिन ...क्या ये सच हैं? क्या वाकई बीते वक़्त में लौटना और भविष्य को देखना असंभव हैं ? आधुनिक समय में जिस घडी को देखते हैं क्या वही समय हैं?

            जब भी हम Time travel के बारे में सुनते या कही पढ़ते हैं तो मन में सवाल आता क्या Time travel संभव हैं? Time travel विज्ञानं की दुनिया का सबसे रसप्रद विषय हैं।


सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक और फिजिक्स के ज्ञाता Dr Albert einsteinne ने Time travel की ऐसी कई theories दी हैं आधुनिक विज्ञान में Albert einsteinne Time travel की theories देने वाले पहले वैज्ञानी थे। उनके द्वारा यह theories 20th सेंचुरी में दी गयी थी।

Panchavarnaswamy temple:

        
        हमारे इंडिया में Time travel से जुडी केवल theories नहीं परन्तु सबूत भी हैं। भारत के तमिलनाडु में तिरूचिराप्पल्ली (Tiruchirappalli) जिले के Uraiyur (also spelt Woraiyur) में स्थित भगवन शिव का पौराणिक पंचवर्णस्वामी मंदिर।


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अनुमान हैं की यह मदिर 2000 वर्ष पुराना हैं। इस मंदिर की दीवारे अद्भुत हैं मानो जैसे बोल रही हो। इस मंदिर की दीवारे Time travel के गहरे रहस्य अपने अंदर समेटे हुए हैं।

यहाँ सामान्य पर्यटकों की नज़र से दूर एक विभाग हैं जहा काफी अंधेरा हैं। इस विभाग में काफी काम मात्रा में पर्यटक जाते हैं।

            इस विभाग की एक दीवार पर एक Sculpture हैं जीसमे एक व्यक्ति को साइकिल पर सवार होता नज़र आता हैं। आप सोचेंगे भला इसमें क्या खास बात हैं? 

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परंतु ज़रा सोचिये जैसे की आगे बताया गया की यह मंदिर 2000 साल पुराना हैं और साइकिल का आविष्कार यूरोप में 19 वी सदी में यानी आज से 200 साल पहले हुई थी।

              तो सोचनेवाली बात यह हे की तो फिर 2000 साल पुराने इस मंदिर की नकाशी करनेवालो ने कैसे भविष्य में आविष्कार होने वाली इस साइकिल का Sculpture 2000 साल पूर्व ही बना दिया? 

क्या किसीने Time travel से समय में पीछे जाकर इसे बनाया था ! या फिर किसीने भविष्य में Time travel किया और फिर वापस लौट के इस Sculpture को बनवाया था ?

कुछ वैज्ञानिक इस मंदिर को 2000 साल पुराना मानाने से इंकार करते हैं। और कुछ वैज्ञानिको का कहना हैं की यह मंदिर केवल 100 साल पुराना हैं। 

                 लेकिन वैज्ञानिको का यह अनुमान गलत हैं क्यूंकि एक पुस्तक 
" Thevaram "(the twelve-volume collection of Śaiva devotional poetry) जो 7 वी सताब्दी में लिखी एक Ancient तमिल पुस्तक हैं। 

इस पुस्तक में इस मंदिर के बारे में वर्णन किया गया हैं। अतः पुस्तक के अनुसार यह मंदिर 7 वी शताब्दी का तो हैं।

            इसके अलावा प्रसिद्ध ग्रीक खगोल विज्ञानी, भूगोलवेत्ता Claudius ptolemy ने अपनी द्वारा की गयी खोज की रिपोर्ट में इस मंदिर का विस्तृत विवरण दिया हैं। जो उन्होंने 2000 साल पहले तैयार की थी।

हालाकि , 2015 में इतिहासकार डॉ. कालीकोवन के अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में लिखे लेख के अनुसार सन 1920 में इस मंदिर का नवीनीकरण हुआ था। संभवतः उस समय इस साइकिल सवार व्यक्ति का Sculpture बना हो।

लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसे Sculpture हैं जो हमे Time travel की बात को सच मान ने पर मजबूर करते हैं। 

           Time travel की इस बात को और पुख्ता करता हैं। मंदिर के इस विभाग का दूसरा Sculpture इस आकृति में एक स्त्री  की  पीठ पर पंख हैं।


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यह Genetic engineering का सबूत हैं यह एक बेहद Compex technique हैं जिसे कामयाब करने में आज के वैज्ञानिक लगे हैं।

आज शायद यह बात अजीब लगे पर वैज्ञानिक इंसान और जानवर के DNA को मिला कर METAHUMANS बनाने की रिसर्च में लगे हैं।

अगले 100 साल से भी कम समय में यह मुमकिन होने की संभावना हैं। जिससे इंसान के भी पंख होंगे ..

            तो सोचनेवाली बात यह हैं की जो technology अभी तक विकसित ही नहीं हुई हैं वह कैसे इस मंदिर की दिवार पर 2000 साल पहले बना दी गई? 

तो सवाल हैं की क्या भविष्य में टाइम ट्रेवल संभव होगा? क्या भविष्य से किसीने पीछे जाकर यह आकृतियो का निर्माण किया होगा? 

        पंचवर्णस्वामी मंदिर में बने यह Sculpture जहा भविष्य के विकास के संकेत देते हैं। वहा कुछ ऐसे भी Sculpture हैं जो बीते वक़्त यानी लाखो साल पहले की वास्तविकता से रूबरू करवाते हैं।

मंदिर के एक भाग में एक ऐसे प्राणी की आकृति हैं जो आज से अंदाज़न 15 लाख साल पूर्व विलुप्त हो चूका हैं।

यह प्राणी हैं "Saber toothed Tiger " (A character of tiger which was shown in Hollywood movie “ Ice age”) जो आज के Tiger जैसे ही थे।


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अंतर केवल इतना था की Saber toothed Tiger के ऊपर के दांतो का उनके upper canine की लम्बाई 1 फ़ीट थी।

        Saber toothed Tiger के body structure दांतो की लम्बाई यह सारी जानकारी Fossil regeneration (A modern scientific technique that shows how an animal looked at that time) से मिलती हैं।

पंचवर्णस्वामी मंदिर में बने Saber toothed Tiger की आकृति को अगर देखा जाये तो वह आकृति लगभग उस वक़्त के Saber toothed Tiger के जैसा ही हैं। 


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        Archeologists के अनुसार ऐसा हूबहू Sculpture बनाने के लिए Saber toothed Tiger को देखना आवश्यक हैं। तो मूर्तिकारों ने इतना हूबहू Sculpture कैसे 2000 साल पहले ही बना दिया ? 

साइकिल पर सवार मनुष्य और स्त्री  की  पीठ पर पंख की आकृति किसीकी कल्पना अवश्य हो सकती हे परंतु Saber toothed Tiger की हूबहू प्रतिकृति का यहाँ होना मुमकिन नहीं हैं। यह केवल Time travel से ही संभव हैं।

        Time travel के बारे में भागवत पुराण में विस्तृत जानकारी दी गयी हैं। वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार ग्रह से ग्रह की समय बीतने की गति भिन्न होती हैं।

अर्थात धरती पर जिस गति से आपकी आयु 30 से 60 यानी 30 साल की होती हैं संभव हे की किसी दूसरे ग्रह पर आपकी आयु केवल 30 से 31 साल यानी 1 साल की ही हो।

हमारे प्राचीन ग्रंथो में Time travel और Time Diletion का युगो पहले से ही उल्लेख हैं।

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        भागवत पुराण की एक कथा में इसका वर्णन हैं। कथा के अनुसार राजा ककुद्मी और उनकी पुत्री रेवती Interstellar travel करके ब्रह्माजी से मिलने जाते हैं। 


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वहां जाकर ककुद्मी ब्रह्माजी से स्वयं को पृथ्वी पर हो रही समस्या का वर्णन करते हैं। 

          यह सुनकर ब्रह्माजी मुस्कुराये और कहा की ककुद्मी और उनकी पुत्री जब पृथ्वी पर वापस जायेंगे तो सबकुछ बदल गया होगा क्योंकि हर ग्रह पर समय अलग -अलग गति से चलता है।

वास्तव में जब ककुद्मी और उनकी पुत्री रेवती पृथ्वी पर पहुंचे तो पृथ्वी पर 15 million वर्ष बीत चुके थे।

        आपको बता दे की पंचवर्णस्वामी मंदिर में एक Sculpture हैं जहा ब्रम्हाजी एक वृक्ष के पास खड़े हैं। उस वृक्ष का आकार मनुष्य के दिमाग जैसा हैं। और वृक्ष के अंतिम छोर शिवलिंग से जुड़ा हैं।  


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जैसा की सब शिवलिंग को ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत माना जाता हैं। इस आकृति में ब्रह्माजी के हाथ में एक रहस्यमयी जोला हैं। 

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        इस प्रकार का जोला विश्व की तमाम प्राचीन सभ्यता (Ancient Civilization) के Sculptures में अलग अलग भगवान की मूर्ति में यह जोला में देखा जा सकता हैं।


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इजिप्त के पिरामिड में बनी मूर्तियों में भी यह जोला में देखने को मिलता हैं। तो क्या ये संभव हैं की यही जोला Time travel Device हो ...! जिससे Time travel संभव था !!


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        क्या इसका अर्थ यह हे की प्राचीन भारत (Ancient india) में Time travel संभव था ? क्या Time travel आज भी संभव हैं ? इसका उत्तर तो किसीके पास नहीं हैं।

परंतु हमारे प्राचीन भारत (Ancient india) के ऐसे रहस्यमयी मंदिर इस बात पर विश्वास करने को विवश अवश्य करते हैं।

हम आशा करते हैं की आपको यह लेख पसंद आया होगा। 
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Monday, September 21, 2020

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5 Mysterious Hindu Temple


दोस्तों , आज हम आपको देवो के देव महादेव , भोलेनाथ, शंकर के ऐसे 5 रहस्यमयी (5 Mysterious HIndu Temple) एवं अद्भुत मंदिरो के बारे में बतानेवाले हैं जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा। 
इन रहयमयी मंदिरों के बारे में जानकर आपको अवश्य वहा जाने की इच्छा होगी।

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1. स्तंभेश्वर महदेव मंदिर:

    स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के भरुच जिले के जम्बूसर तहसील के कावी में स्थित हैं। इस मंदिर की ख़ास एवं अनूठी बात यह हे की इस मंदिर में स्थित शिवलिंगर सुबह और शाम अर्थात दिन में दो बार समुद्र में अदृश्य हो जाता हैं।



समुद्र में आने वाले ज्वार और भाटे के कारण ऐसा होता हैं। मंदिर में आने वाले भक्तो को पहले से ही ज्वार और भाटे के आने का समय बता दीया जाता हैं। जिससे भक्तो को दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।

लोगो का कहना हैं की इस मंदिर में स्वयं भोलेनाथ विराजमान हैं अतः समुद्र स्वयं शिवजी का अभिषेक करते हैं। 


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इस मंदिर का उल्लेख शिवपुराण के "रुद्रसंहिता" में किया गए हैं। 

शिवपुराण के रुद्रसंहिता में वर्णित कथा अनुसार ताड़कासुर नाम का एक असुर था। ताड़कासुर भगवान् शिव का अनन्य भक्त था।  ताड़कासुर ने वरदान मांगने के लिए भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव से वरदान माँगा की उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथो ही हो वह भी केवल 6 दिन की आयु का। 

भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया।. भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर ताड़कासुर ने स्वयं को अमर समजकर ऋषि मुनियो को आतंकित करना प्रारंभ कर दिया। 

देवतागण ताड़कासुर के इस आतंक से परेशान हो कर शिवजी के शरण में गए। भगवान शिव ने देवतागण को आश्वासन दिया।

        शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत कुंड में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने केवल ६ दिन की आयु में ताड़कसुर का वध किया।

किन्तु जब कार्तिकेय को ज्ञात हुआ की ताड़कासुर भगवान शिव का भक्त था तो वह व्यथित हो गए। अतः भगवान विष्णु ने भगवान कार्तिकेय को वधस्थल पर शिवलिंग की स्थापना करने को कहा जिससे भगवान कार्तिकेय के मन की व्यथा शांत हो जाये।

भगवान कार्तिकेय ने भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार सभी देवताओं के साथ मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। 

2. निष्कलंक महदेव मंदिर:

        निष्कलंक महदेव मंदिर गुजरात के भावनगर जिले के कोलियाक तट से 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित हैं। यहाँ सागर की लहरे प्रतिदिन शिवलिंग का अभिषेक करती हैं। भक्तजन पानी में चलकर भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं।

भगवान के दर्शन करने हेतु भक्तो को ज्वार उतरने की प्रतीक्षा करनी पड़ती हैं। भारी ज्वार के समय यह मंदिर पूरी तरह से जलमग्न हो जाता हैं। केवल मंदिर की ध्वजा ही दिखाई देती हैं। जिसे देखकर यह अंदाज़ा भी नहीं आता की समुद्र के अंदर शिवजी का पौरणिक मंदिर हैं।


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        इस मंदिर की स्थापना पांडवो ने की थी शास्त्रों के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव अपने ही हाथो अपने स्वजनों की हत्या के पाप से दुखी थे। और पांडव इस पाप से मुक्ति चाहते थे। अतः सभी पांडव भगवान श्री कृष्णा के पास गए।

श्री कृष्णा ने पाडवो को एक काली ध्वजा और गाय देते हुए कहा " तुम सभी भाई इस गाय का अनुसरण करते हुए यात्रा प्रारंभ करो और जब इस गाय एवं ध्वजा का रंग सफ़ेद हो जाये तो समाज लेना की तुम सभी को इस पाप से मुक्त हो गए हो और उस स्थान पर तुम सब भगवान शिव की तपस्या भी अवश्य करना।”

        पांचो पांडव के कई दिन के प्रवास के पश्चात जब सभी भाई वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफ़ेद हो गया। जिससे सभी पांडव हर्षित हुए। 


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बाद में उन्हों ने श्री कृष्ण के कहे अनुसार भगवान शिव की तपस्या की जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर सभी पांच भाईओ को लिंग रूप में अलग अलग दर्शन दिए। जो आज भी वहा पर स्थित हैं।

        शिवलिंग के पास में नंदी की भी प्रतिमा स्थित हैं। सभी शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर स्थित हैं। चबूतरे के निकट एक तालाब हैं। जिसे पांडव तालाब कहा जाता हैं। 

सभी भक्त इस तालाब में हाथ -पांव स्वच्छ करते है और फिर भगवान के दर्शन करते हैं। कहा जाता हैं की निष्कलंक महदेव के दर्शन करने से सभी पापो से मुक्ति मिलती हैं।

भाद्रपद्र मास की अमावस्या को यहाँ पर मेला लगता हैं जिसे "भाद्रवी मेला" कहते हैं।

3. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर:

           छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर की दुरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर। माना जाता हैं की भगवान श्री राम ने खर और दूषण के वध के पश्चात अपने भाई लक्ष्मण के कहने से इस मंदिर की स्थापना की थी।


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यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। 

        इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। मान्यता के अनुसार गर्भगृह में स्थित शिवलिंग की स्थापना लक्ष्मणजी ने की थी।


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इस लक्षलिंग एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है। 

इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि इस पातालगामी लक्ष्य छिद्र मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है।

        इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। लक्षलिंग ज़मीन से 30 फ़ीट ऊपर हैं। इसे स्वयंभू लिंग भी कहा जाता हैं।

प्रति वर्ष यहाँ महाशिवरात्रि के मेले में शिव की बारात निकाली जाती है।

4. अचलेश्वर महादेव मंदिर:

            अचलेश्वर महादेव के नाम से भगवान शिव के कई मंदिर भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित हैं। उनमे से ही एक हैं राजस्थान के धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर।

यह मंदिर माउन्ट आबू से 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहड़ियों में स्थित हैं। यह मंदिर चम्बल के दुर्गम बीहड़ो में हैं। 

            इस मंदिर की ख़ास बात यह हे की इस मंदिर में स्थि शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का रंग प्रातः के समय लाल, दोपहर तक केसरिया और रात के समय श्याम हो जाता हैं।



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शिवलिंग के इस तरह रंग बदलने का कारण वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं। इस मंदिर में प्रवेश करते ही नंदीजी की एक 4 टन की प्रतिमा हैं। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पातालखंड के स्वरुप में हैं।


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शिवलिंग के ऊपर की तरफ अंगूठे का निशान बना हैं। लोगो के अनुसार ये भगवान शिवजी के दहिने पैर का अंगूठा हैं। 

इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का छोर कहा तक जाता हैं इस बात क पता कई प्रयास करने के बाद भी कोई नहीं लगा पाया हैं।

5.बिजली महादेव मंदिर:

        हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित महादेव मंदिर अनोखा हैं। कुल्लू शहर पार्वती और व्यास नदी के बीच बसा हैं। पार्वती और व्यास नदी के संगम के पास एक पर्वत पर बिजली महादेव मंदिर स्थित हैं। 


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पूरी कुल्लू घाटी में ये मान्यता हैं की ये संपूर्ण घाटी विशालकाय सांप क एक रूप हैं जिसका वध भगवन शिव ने किया था। 

कुलान्त नामक नाग का वध होते ही उसका संपूर्ण शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला था वह क्षेत्र पर्वत में बदल गया।

            बिजली महदेव मदिर में जिस स्थान पर शिवलिंग पर हर 12 वर्ष के पश्चात आकाश से भयानक बिजली गिरती हैं। बिजली के गिरने से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता हैं।


Ancient Temple,  Hindu Temple, Bijali Mahadev

Ancient Temple,  Hindu Temple, Bijali Mahadev



शिवलिंग के चकनाचूर होने के बाद मंदिर के पुजारी शिवलिंग के टुकड़ो को मख्खन से जोड़ देते हैं। कुछ समय के बाद शिवलिंग पुनः अपना ठोस आकार ले लेता हैं।






Friday, September 18, 2020

Ancient Temple, Kailasha Temple (Ellora Caves)

Kailasha Temple (Ellora Caves)


              मॉर्डन इंजीनियरिंग में की ऐसी खूबसूरत ईमारत बनी हैं जो हमे आश्चर्यचकित करती हैं। मॉर्डन इंजीनियरिंग का सबसे उत्तम नमूना दुबई में स्थित बुर्ज खलीफा हैं।

लेकिन हमारे प्राचीन भारत (Ancient India) की एक इंजीनियरिंग वास्तु (Architectural) और निर्माण (Construction) की एक टेक्नोलॉजी ऐसी हे जिससे बुर्ज खलीफा जैसी ईमारत कुछ ही दिनों में बन सकती हैं।

महाराष्ट्र के मुंबई से 200 मील दूर औरंगाबाद में स्थित एलोरा की गुफाएं (Ellora caves) भारत के सबसे प्राचीन और अद्भुत स्मारकों में से एक हैं।

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Ellora caves , Aurangabad, Maharastra

Ellora caves , Aurangabad, Maharastra



यहाँ गुफा नंबर 16 (Cave no 16) में स्थित हैं भगवान शिव का कैलासा मंदिर .यह मंदिर अपनी ख़ूबसूरती के पीछे रहस्य छिपाये हुए हैं।

Kailasha Temple (Ellora Caves)


        एलोरा में कुल 34 गुफाएं हैं जिसे पत्थर को काटकर बनाई गयी हैं। उनमे से ही एक हैं यह कैलासा मंदिर। इस मंदिर को भी अन्य गुफाओं की तरह चट्टान को उकेर (Engrave) कर बनाया गया हैं।


Ancient Temple,  Kailasha Temple (Ellora Caves)

Ancient Temple,  Kailasha Temple (Ellora Caves)



माना जाता हैं की इस मंदिर का निर्माण 1200 वर्ष पूर्व यानी 760 A.D में किया गया था। यह मंदिर भगवान शिव के हिमालय स्थित कैलाश मंदिर का प्रतिरूप माना जाता हैं। 

इस मंदिर की ऊंचाई 100 फ़ीट हैं जो 3 मंज़िला इमारत से भी ज़्यादा हैं। 

Cunstruction Of Kailasha Temple


            सामान्य रूप से किसी भी मंदिर का निर्माण नीचे से ऊपर किया जाता हैं। दुनिया के कोई भी गुफा को देखा जाये जैसे की Karla Caves जो की पुणे के लोनावला में स्थित हैं। उसे बनाने के लिए बहार से अंदर की तरफ काटा गया हैं। जिसे Cut In Monolith कहते हैं। 


Kailasha Temple (Ellora Caves)

Kailasha Temple (Ellora Caves)


परंतु इस कैलाश मंदिर का निर्माण एक बड़ी चट्टान को ऊपर से नीचे की तरफ काट कर किया गया हैं। जिसे Cut Out Monolith कहते हैं। जो बहुत कठिन एवं जटिल कार्य हैं।

Mystery Of Cunstruction 


        शुरुआती सर्वे से माना गए हैं की इस मंदिर को पर्वत के पत्थर पर छैनी और हथोड़े की सहायता से बनाया गया हैं। इस मंदिर को बनाने में 18 वर्ष का समय लगा था। 


वैज्ञानिको का मानना हैं की इन 18 वर्ष में मंदिर को बनाने के लिए 4 लाख टन पत्थरो को हटाया गया होगा। 


वैज्ञानिक का मानना हैं की ये चमत्कार ही हो सकता हैं की 4 लाख टन पत्थरो को हटाने का ये कार्य सिर्फ 18 वर्षो में ही समाप्त कर लिया गया।


Ellora caves , Kailasha Temple (Ellora Caves)

Kailasha Temple (Ellora Caves), Aurangabad, Maharastra


अनुमान लगाया जाये के उस समय अगर मज़दूरों ने बिना रुके लगातार 12 घंटे 18 वर्षो तक काम किया होगा तब जा कर उन्होंने हर घंटे 5 टन पत्थर को हटाया होगा। 


तब जा कर 18 वर्ष में ये कार्य संभव हुआ होगा। लेकिन यहाँ 760 A.D की बात हैं जब औज़ार के नाम पर केवल छैनी और हथोड़ा ही उपलब्ध था। 


आज की टेक्नोलॉजी में भी यह कार्य संभव नहीं हैं। तो आज से हज़ारो साल पहले ये कैसे संभव हुआ होगा ! 

और इस 18 वर्ष के  कार्यकाल में तो केवल पत्थर को काटा गया होगा परंतु मंदिर के दीवारों पर बनी मूर्तियां और मूर्तियो पर की गयी अद्भुत शिल्पकारी और मंदिर में बने भवन को बनाने में कितना समय लगा होगा? 


Kailasha Temple (Ellora Caves)


Kailasha Temple (Ellora Caves), Ancient Sculpture




आज के समय की टेक्नोलॉजी में आधुनिक मशीन से भी 4 लाख टन पत्थर को 18 वर्ष में हटाना असंभव हैं 

तो उस समय की टेक्नोलॉजी के हिसाब से Ellora caves में बने इस मंदिर को बनने में 18 वर्ष नहीं पर 100 वर्ष लगने चाहिए थे। 

तो यह एक आश्चर्य की बात हैं की केवल 18 वर्षो में आखिर ये संभव हुआ कैसे ?

Ancient Wapon “Bhaumastra”


        वैदिक पुराण में एक अद्भुत अस्त्र का वर्णन हैं और वो अस्त्र हैं "भौमास्त्र" (The weapon could create tunnels deep into the earth and summon jewels) कहा जाता हैं की यह अस्त्र पत्थरो को हवा में परिवर्तित कर सकता हैं। 
Ancient Wapon , Bhaumastra

Ancient Wapon , Bhaumastra


भौमास्त्र की रचना देवी भूमि (धरती माता) द्वारा की गयी थी। और भौमास्त्र गहरी खुदाई करने में टनल की रचना करने में और जमीं से जेवरात निकाल ने सक्षम था।


हम भगवान शिव को केवल विनाशक के रूप में ही जानते हैं। परंतु भगवान शिव में सर्जन करने की शक्तिया भी थी। 

और जैसा की माना जाता हैं की यह मंदिर भगवान शिव के हिमालय स्थित कैलाश मंदिर का प्रतिरूप हैं। 

तो संभव है की इस मंदिर की रचना स्वयं भगवान शिव ने भौमास्त्र का प्रयोग से की हो।


DR.Deepak Shimkhada (professor at the Claremont School of Theology and Chaffey College) ने एक दिलचस्प बात पर रौशनी डाली। 

उन्होंने कहा की मंदिर को बनने में जो समय लगा वह अलग बात हैं। परंतु सोचनेवाली बात यह हैं की अगर पत्थर तोड़े गए थे और हटाए गए थे तो आखिर गए कहा? 

इस तरह के पत्थर या मलबा कैलाशा मंदिर के दायरे में दूर दूर तक के इलाके में कही नहीं दखे यहाँ तक की आसपास की और कोई गुफाओ में भी नहीं दिखाई दिए तो वह पत्थर आखिर गए कहा? 


Ancient Astrophysicist का कहना हैं की ये बात सच हैं की कई साल पहले भौमास्त्र का अस्तित्व था। 


 Ellora caves में बने इस कैलाशा मंदिर के निर्माण में भौमास्त्र इस्तेमाल भी हुआ था । न केवल मंदिर की रचना में परन्तु मंदिर के नीचे एक शहर की रचना में भी हुआ था । 

Underground City Kailasha Temple (Ellora Caves)


        कैलाशा मंदिर कुछ विचित्र टनल की जाल से भरा हुआ हैं। यहाँ पानी के बहने के लिए खास अंडरग्राउंड प्रणाली हैं। माना जाता हैं की मंदिर में स्थित टनल एक Underground City तक जाती हैं। 


जैसा की हम जानते हैं की शिवलिंग की पूजा में पानी चढ़ाया जाता हैं। पूजा के बाद ये पानी बाहर पेड़ पौधे तक पहुँचता हैं।



Kailasha Temple (Ellora Caves)




कैलाशा मंदिर में भी ऐसे असंख्य शिवलिंग हैं। तो यह संभावना हैं की मंदिर के नीचे स्थित टनल को पूजा के इस पानी को Underground City तक पहुंचाने के लिए बनाया गया हो। 


Demolition of Kailasha Temple (Ellora Caves)


सन 1682 में उस समय के मुग़ल राजा औरंगज़ेब ने अपने 1000 सैनिको की एक टुकड़ी को इस मंदिर को पारी तरह ध्वस्त करने का आदेश दिया था।


Kailasha Temple (Ellora Caves)


Kailasha Temple (Ellora Caves),Aurangabad, Maharastra



यह 1000 सैनिको की टुकड़ी लगातार 3 वर्ष तक मंदिर को नुकसान पहुंचाने कार्य करती रही परंतु पूरी तरह मंदिर को असमर्थ रही।आखिरकार औरंगज़ेब ने मंदिर को ध्वस्त करने के इस कार्य को रुकवा दिया।


तो मन में यह बात ज़रूर आती हैं की जिस मंदिर को एक साधारण मनुष्य तोड़ भी नहीं सकता तो एक मनुष्य के लिए इस मंदिर की रचना कैसे संभव हैं ...? 


अतः इस मंदिर की रचना भी एक रहस्य ही बात हैं।





Thursday, September 10, 2020

Brahmastra ,Ancient India, Ancient Nuclear Wapon

Brahmastra, Ancient India, Ancient Neuclear Wapon

     
        दोस्तों आज हम आपको परमाणु हथियार (Nucler Wapon) के बारे में बताने जा रहे हैं। क्या आपको पता हैं की सर्वप्रथम परमाणु हथियार भारत में बना था? न सिर्फ बना था पर इस्तेमाल हुआ था।

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       हम आप को आधुनिक दुनिया के परमाणु हथियार (Nucler Wapon) के बारे में नहीं प्राचीन भारत (Ancient India ) के प्राचीन (Ancient ) परमाणु हथियार (Nucler Wapon) अर्थात ब्रह्मास्त्र बारे में बताने जा रहे हैं।

क्या हैं ब्रह्मास्त्र ?

" ब्रह्मास्त्र " का अर्थ होता है " ब्रह्मा " का अस्त्र याने ईश्वर का अस्त्र जिसका निर्माण " भगवान ब्रह्मा " ने दैत्यों के नाश हेतु किया था। ... और महाभारत युद्ध में इस परमाणु अस्त्र का प्रयोग भी हुआ था। 

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Lord Bramaha, Brahmastra 

       महभारत केवल महायोद्धाओं की गाथा नहीं हैं। इसमें कई ज्ञान विज्ञान के रहस्य हैं। इनमे से ही एक हैं ब्रह्मास्त्र.... ब्रह्मास्त्र एक दैवीय शस्त्र था जो संभवतः प्राचीन समय का परमाणु हथियार (Nucler Wapon) भी था। 


       ब्रह्मास्त्र अचूक एवं विनाशक था ब्रह्मास्त्र सभी दैवीय शस्त्रों में सबसे शक्तिशाली था। रामायण काल में यहाँ अस्त्र विभीषण एवं लक्ष्मण के पास ही था।

Brahmastra ,Ancient India, Ancient Neuclear Wapon
Brahmastra, AncientIndia, Ancient Neuclear Wapon


परन्तु महाभरत में यहाँ अस्त्र द्रोणाचर्य . अर्जुन , युधिष्ठिर , कर्ण , श्री कृष्णा , प्रदुम्न , अस्वथामा ,के पास था। 

कहा जाता हैं की इस अस्त्र को चलाने वाला ही इस अस्त्र को वापस ला सकता हैं।या फिर एक ब्रह्मास्त्र के प्रहार को दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही रोका जा सकता हैं।

       प्राचीन काल में इस ब्रम्हास्त्र प्रयोग अस्वथामा ने किय था। परन्तु ब्रम्हास्त्र को वापस लाने का ज्ञान उसे नहीं था। अतः उनका अमरत्व ही उनके लिए शाप बन गया। 

      महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र का वर्णन उपलभ्द्ध हैं। उसमे महर्षि वेदव्यासजी ने लिखा हैं की जब ब्रह्मास्त्र का प्रयोग हुआ था तो उसका विस्फोट 1000 सूर्य से भी अधिक चमकदार था। 
Neuclear Wapon,. Neuclear Explosion
Neuclear Wapon,. Nuclear Explosion


सूरज हवा में घूम रहा था पेड़ों में आग लगी थी। आसपास तबाही के अलावा कुछ नहीं था। विस्फोट के बाद जो इंसान बच गए उनके बाल जड़ने लगे। 

नाखून स्वतः ही उखड के गिरने लगे। महर्षि वेद व्यास ने आगे लिखा हैं की जहा पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग होता हैं वहा 12 वर्षों तक कोई जीव , कोई भी पौधे या जनजाति उत्पन्न नहीं हो सकती।

महाभारत में इस बात का भी उल्लेख हैं की ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के उपरांत गर्भवती महिलाओ के बच्चे गर्भ में ही मर गए।

तो जरा अंदाज़ा लगाइए की ये सब वर्णन जो हमारे ग्रंथो में हज़ारो वर्षो पूर्व से ही किया गया हैं वह आधुनिक युग में कहा देखा गया हैं? 

      ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के उपरांत जो लक्षण हमारे ग्रंथो में पहले से ही वर्णन किया गया हैं वैसे ही लक्षण जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर 1945 के अगस्त महीने में किये गए परमाणु हमले के बाद आज भी देखे जा सकते हैं। 

ब्रह्मास्त्र के  अस्तित्व के अवशेष :

       जिन देश को हम आज पकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के नाम से जानते हैं प्राचीन युग में इन्हे पांचाल , गांधार , मद्र, कुरु कहा जाता था।

सिंधु नदी यानी आज की Indus river और सरस्वती नदी के बिच सिंधु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदारो के शहर थे। 

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AncientIndia, Mohenjodaro

     मोहनजोदारो हड़प्पन संस्कृति का हिस्सा हैं। हड़प्पन संस्कृति भारत की सबसे प्राचीन संस्कृति हैं। सन 1922 में R. D. Banerji ने Sir John Marshall की देखरेख में मोहनजोदारो के खंडरो में संशोधन किया। परन्तु भारत पकिस्तान के विभाजन के बाद संशोधन पूर्ण नहीं हो सका। 

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Harappan civilization, Ancient India,  Mohenjo daro 


बाद में Professor David Davenport और उनके साथियो ने इस जगह पर सालो तक खोज की। सन 1977 में कई बातें सामने आयी।

यहाँ उन्हें विक्ट्रीफिकेशन प्रोसेस ( जब पत्थर लावा के साथ पिगल के ठंडा हो के कांच जैसे रूप ले लेता हैं ) किये गए पत्थर के अवशेष मिले जिस पर संशोधन से पता चला की इस प्रक्रिया के लिए 5000 ºC के तपमान की आवश्यकता होती हैं।

 और ये कोई सुपरनेचुरल ताकत से ही हो सकता हैं और ये सुपरनेचुरल ताकत थी ब्रह्मास्त्र।

       सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीन पुरातात्विक स्थल पर परमाणु विस्फोट (Neucler Explosion) के और भी पुख्ता सबूत मिले। 

कई सालो की खुदाई के बाद मोहनजोदारो शहर की गलियों में एक स्थल पर 44 नरकंकाल मिले थे। 

उनमे से कुछ छोटे बच्चो के भी थे। कई वर्षो बाद भी उनकी हाड़ियाँ ना सड़ी  ना ही गली। 

परीक्षण से पता चला के उनमे से कुछ हड़ियाँ रेडियोएक्टिव (Radioactive) थी। यानि परमाणु विस्फोट (Nucler Explosion) का पुख्ता प्रमाण।

         राजस्थान में भी एक जगह पर हाउसिंग सोसायटी का निर्माण हो रहा था वहा रेडियोएक्टिव धूल (Radioactive Dust) मिली थी। अतः हाउसिंग सोसायटी का निर्माण रोक कर DRDO द्वारा रेडियोएक्टिव केंद्र (Radioactive Center) शुरू किया गया।

नुक्लेअर बम के संशोधक J. Robert Oppenheimer गीता , महाभारत , प्राचीन हिन्दू ,एवं वैदिक पाठ के जानकार भी थे। 

उन्हों ने कई बार अपनी interview में ब्रम्हास्त्र से जुडी बात का ज़िक्र किया था।

       हिन्दू प्राचीन वैदिक पाठ में प्रकाशवर्ष की गणना , पृथ्वी से सूर्य क अंतर , आणविक सिद्धांत (Atomic Theory) का उल्लेख हुआ हैं। वैज्ञानिको के अनुसार परमाणु बम्ब बनाने के लिए ये सब जानकारी आवश्यक हैं।

ये सारी बातें इस तरफ इशारा करती हैं की पहला परमाणु हथियार प्राचीन भारत (Ancient india ) की सभ्यता में ही इस्तेमाल किया गया था।


हम आशा करते हैं की आपको यह लेख पसंद आया होगा।



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