Hanumant Ramayana
दोस्तों ,रामायण और महाभारत हिन्दू धर्म के प्रचलित महाकाव्य हैं। वैसे तो हम सब जानते हैं की रामयण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी।
पर क्या आप जानते हैं की महर्षि वाल्मीकि से पहले भी रामायण लिखी गई थी... !जी हा....महर्षि वाल्मीकि जी से पहले भी रामायण लिखी गई थी।
और उस रामायण की रचना स्वयं हनुमान जी ने की थी जिसे हनुमंत रामायण कहा गया।
परन्तु हनुमानजी ने इस रामायण को समुद्र में विसर्जित कर दिया था। पर क्या आप जानते हैं की हनुमानजी ने स्वयं की रची रामायण को समुद्र में क्यों फेक दिया?
इसकी रोचक कथा कुछ इस प्रकार हैं।
Hanumant Ramayana Katha
सब जानते हैं की भगवान् श्री राम ने हनुमानजी और वानर सेना की सहायता से रावण का वध किया। 14 वर्ष के वनवास के उपरांत श्री राम अयोध्या वापस आते हैं।
भगवान श्री राम के राजा बनने एवं रज्य को संभाल ने के कुछ साल के बाद हनुमानजी कैलाश जाकर तपस्या करने का निश्चय करते हैं।
इसिलए वो श्री राम से आज्ञा लेकर हनमानजी तपस्या के लिए कैलाश प्रस्थान करते हैं। कैलाश पहुँचकर एक चट्टान पर तपस्या करने लगते है।
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तपस्या करने के साथ साथ वो पूर्ण भक्तिभाव से हनुमानजीने चट्टान पर अपने नाख़ून की सहायता से रामायण लिखना प्रारंभ कर दिया।
हर क्षण भगवान श्री राम के साथ रहने से ऐसे कोई पल नहीं था जो हनुमानजी से छुपी हो।
इसीलिए हनुमानजी ने इस रामायण में भगवन श्री राम के जीवन के हर क्षण का ऐसा शब्दांश वर्णन था जो किसी अन्य के लिए कठिन था।
कुछ साल बाद हनुमानजी की तपस्या समाप्त होने के उपरांत महर्षि वाल्मीकि जो की उस समय के सर्वश्रेष्ठ ऋषियों में से एक थे। उन्होंने भी कई वर्षो के कठिन परिश्रम से एक रामयण की रचना की थी।
महर्षि वाल्मीकि उस समय अपनी रची रामायण को भगवान शिव के चरणों में समर्पित करने कैलाश पधारे थे। उन्हों ने तब चट्टान पर हनुमान जी द्वार लिखी रामायण पढ़ी।
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महर्षि वाल्मीकि उस रामयण को पढ़कर बहोत निराश हो जाते हैं।हनुमानजी को जब ये बात ज्ञात हुई तो उन्होंने महर्षि के पास जा कर निराश होने का कारण पूछा।
तब महर्षि हनुमान जी को प्रणाम करते हुए कहा .हे पवनपुत्र ...! मेने आपकी लिखी हुई रामयण पढ़ी और मेरी निरशा का कारण यह हे की मेने वर्षो तक कठिन परिश्रम करके जो रामायण लिखी हैं वो आपकी लिखी रामयण के आगे कुछ भी नहीं हैं।
आपकी लिखी रामयण को पढ़ने के बाद कोई मेरी लिखी रामायण को कोई पढ़ेगा ही नहीं। महर्षि वल्मीकि के ये बात सुनकर हनुमानजी ने उस चट्टान को अपने एक कंधे पर उठाया।
हनुमानजी ने वाल्मीकिजी को भी अपने दूसरे कंधे पर बैठने की प्रार्थना की और समुद्र की ओर प्रस्थान किया।
समुद्र के मध्य पहुचकर हनुमानजी ने वाल्मीकि जी के सामने ही अपनी लिखी रामायण की शिला को भगवान श्री राम को समर्पित करते हुए समुद्र में विसर्जित कर दिया।
हनुमानजी ने फिर महर्षि वाल्मीकि से कहा; "मेरी लिखी रामयण को पढ़नेवाले केवल आप ही हे में आपको वचन देता हूँ की आज के उपरांत मेरी लिखी रामयण को कोई नहीं पढ़ सकेगा और आपकी लिखी रामयण ही प्रसिद्ध होगी अब आप कृपया अपनी निराशा त्याग दीजिये।
तब महर्षि गदगद हो कर हनुमान जी से कहते हैं : हे प्रभु ! आप धन्य हैं आप जैसा ज्ञानी एवं दयावान कोई नहीं हैं।
हर कोई जानता हैं की भगवान श्री राम का आपके जीवन में क्या महत्व हैं और आपने मेरी लिए अपने हाथो से लिखी रामयण को नष्ट कर दिया....!
में आपको वचन देता हूँ की में कलियुग में फिर से जन्म लंग और रामायण की फिर से उस समय के आम लोगो की भाषा में रचना करूँगा।
अतः माना जाता हैं की रामचरित मानस के रचयिता स्वामी तुलसीदास और कोई नहीं महर्षि वाल्मीकि का ही रूप थे।
तुलसीदास जी ने ही हनुमान चालीसा की रचना की थी। जिसे आज भी भक्तजन हनुमान जी की आराधना में पहले पढ़ते हैं।
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