5 Mysterious Hindu Temple
दोस्तों , आज हम आपको देवो के देव महादेव , भोलेनाथ, शंकर के ऐसे 5 रहस्यमयी (5 Mysterious HIndu Temple) एवं अद्भुत मंदिरो के बारे में बतानेवाले हैं जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होगा।
इन रहयमयी मंदिरों के बारे में जानकर आपको अवश्य वहा जाने की इच्छा होगी।
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1. स्तंभेश्वर महदेव मंदिर:
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के भरुच जिले के जम्बूसर तहसील के कावी में स्थित हैं। इस मंदिर की ख़ास एवं अनूठी बात यह हे की इस मंदिर में स्थित शिवलिंगर सुबह और शाम अर्थात दिन में दो बार समुद्र में अदृश्य हो जाता हैं।
समुद्र में आने वाले ज्वार और भाटे के कारण ऐसा होता हैं। मंदिर में आने वाले भक्तो को पहले से ही ज्वार और भाटे के आने का समय बता दीया जाता हैं। जिससे भक्तो को दर्शन करने में किसी प्रकार की परेशानी न हो।
लोगो का कहना हैं की इस मंदिर में स्वयं भोलेनाथ विराजमान हैं अतः समुद्र स्वयं शिवजी का अभिषेक करते हैं।
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शिवपुराण के रुद्रसंहिता में वर्णित कथा अनुसार ताड़कासुर नाम का एक असुर था। ताड़कासुर भगवान् शिव का अनन्य भक्त था। ताड़कासुर ने वरदान मांगने के लिए भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव से वरदान माँगा की उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथो ही हो वह भी केवल 6 दिन की आयु का।
भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया।. भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर ताड़कासुर ने स्वयं को अमर समजकर ऋषि मुनियो को आतंकित करना प्रारंभ कर दिया।
देवतागण ताड़कासुर के इस आतंक से परेशान हो कर शिवजी के शरण में गए। भगवान शिव ने देवतागण को आश्वासन दिया।
शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत कुंड में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने केवल ६ दिन की आयु में ताड़कसुर का वध किया।
किन्तु जब कार्तिकेय को ज्ञात हुआ की ताड़कासुर भगवान शिव का भक्त था तो वह व्यथित हो गए। अतः भगवान विष्णु ने भगवान कार्तिकेय को वधस्थल पर शिवलिंग की स्थापना करने को कहा जिससे भगवान कार्तिकेय के मन की व्यथा शांत हो जाये।
भगवान कार्तिकेय ने भगवान विष्णु की आज्ञा अनुसार सभी देवताओं के साथ मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।
2. निष्कलंक महदेव मंदिर:
निष्कलंक महदेव मंदिर गुजरात के भावनगर जिले के कोलियाक तट से 3 किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित हैं। यहाँ सागर की लहरे प्रतिदिन शिवलिंग का अभिषेक करती हैं। भक्तजन पानी में चलकर भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं।
भगवान के दर्शन करने हेतु भक्तो को ज्वार उतरने की प्रतीक्षा करनी पड़ती हैं। भारी ज्वार के समय यह मंदिर पूरी तरह से जलमग्न हो जाता हैं। केवल मंदिर की ध्वजा ही दिखाई देती हैं। जिसे देखकर यह अंदाज़ा भी नहीं आता की समुद्र के अंदर शिवजी का पौरणिक मंदिर हैं।
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इस मंदिर की स्थापना पांडवो ने की थी शास्त्रों के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडव अपने ही हाथो अपने स्वजनों की हत्या के पाप से दुखी थे। और पांडव इस पाप से मुक्ति चाहते थे। अतः सभी पांडव भगवान श्री कृष्णा के पास गए।
श्री कृष्णा ने पाडवो को एक काली ध्वजा और गाय देते हुए कहा " तुम सभी भाई इस गाय का अनुसरण करते हुए यात्रा प्रारंभ करो और जब इस गाय एवं ध्वजा का रंग सफ़ेद हो जाये तो समाज लेना की तुम सभी को इस पाप से मुक्त हो गए हो और उस स्थान पर तुम सब भगवान शिव की तपस्या भी अवश्य करना।”
पांचो पांडव के कई दिन के प्रवास के पश्चात जब सभी भाई वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफ़ेद हो गया। जिससे सभी पांडव हर्षित हुए।
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बाद में उन्हों ने श्री कृष्ण के कहे अनुसार भगवान शिव की तपस्या की जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो कर सभी पांच भाईओ को लिंग रूप में अलग अलग दर्शन दिए। जो आज भी वहा पर स्थित हैं।
शिवलिंग के पास में नंदी की भी प्रतिमा स्थित हैं। सभी शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर स्थित हैं। चबूतरे के निकट एक तालाब हैं। जिसे पांडव तालाब कहा जाता हैं।
सभी भक्त इस तालाब में हाथ -पांव स्वच्छ करते है और फिर भगवान के दर्शन करते हैं। कहा जाता हैं की निष्कलंक महदेव के दर्शन करने से सभी पापो से मुक्ति मिलती हैं।
भाद्रपद्र मास की अमावस्या को यहाँ पर मेला लगता हैं जिसे "भाद्रवी मेला" कहते हैं।
3. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर:
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर की दुरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर। माना जाता हैं की भगवान श्री राम ने खर और दूषण के वध के पश्चात अपने भाई लक्ष्मण के कहने से इस मंदिर की स्थापना की थी।
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यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है।
इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। मान्यता के अनुसार गर्भगृह में स्थित शिवलिंग की स्थापना लक्ष्मणजी ने की थी।
इस लक्षलिंग एक पातालगामी लक्ष्य छिद्र है जिसमें जितना भी जल डाला जाय वह उसमें समाहित हो जाता है।
इस लक्ष्य छिद्र के बारे में कहा जाता है कि इस पातालगामी लक्ष्य छिद्र मंदिर के बाहर स्थित कुंड से इसका सम्बंध है।
इन छिद्रों में एक ऐसा छिद्र भी है जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसे अक्षय कुंड कहते हैं। लक्षलिंग ज़मीन से 30 फ़ीट ऊपर हैं। इसे स्वयंभू लिंग भी कहा जाता हैं।
4. अचलेश्वर महादेव मंदिर:
अचलेश्वर महादेव के नाम से भगवान शिव के कई मंदिर भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित हैं। उनमे से ही एक हैं राजस्थान के धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर।
यह मंदिर माउन्ट आबू से 11 किलोमीटर दूर अचलगढ़ की पहड़ियों में स्थित हैं। यह मंदिर चम्बल के दुर्गम बीहड़ो में हैं।
इस मंदिर की ख़ास बात यह हे की इस मंदिर में स्थि शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का रंग प्रातः के समय लाल, दोपहर तक केसरिया और रात के समय श्याम हो जाता हैं।
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शिवलिंग के इस तरह रंग बदलने का कारण वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं। इस मंदिर में प्रवेश करते ही नंदीजी की एक 4 टन की प्रतिमा हैं। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पातालखंड के स्वरुप में हैं।
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शिवलिंग के ऊपर की तरफ अंगूठे का निशान बना हैं। लोगो के अनुसार ये भगवान शिवजी के दहिने पैर का अंगूठा हैं।
इस मंदिर में स्थित शिवलिंग का छोर कहा तक जाता हैं इस बात क पता कई प्रयास करने के बाद भी कोई नहीं लगा पाया हैं।
5.बिजली महादेव मंदिर:
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित महादेव मंदिर अनोखा हैं। कुल्लू शहर पार्वती और व्यास नदी के बीच बसा हैं। पार्वती और व्यास नदी के संगम के पास एक पर्वत पर बिजली महादेव मंदिर स्थित हैं।
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पूरी कुल्लू घाटी में ये मान्यता हैं की ये संपूर्ण घाटी विशालकाय सांप क एक रूप हैं जिसका वध भगवन शिव ने किया था।
कुलान्त नामक नाग का वध होते ही उसका संपूर्ण शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला था वह क्षेत्र पर्वत में बदल गया।
बिजली महदेव मदिर में जिस स्थान पर शिवलिंग पर हर 12 वर्ष के पश्चात आकाश से भयानक बिजली गिरती हैं। बिजली के गिरने से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता हैं।
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शिवलिंग के चकनाचूर होने के बाद मंदिर के पुजारी शिवलिंग के टुकड़ो को मख्खन से जोड़ देते हैं। कुछ समय के बाद शिवलिंग पुनः अपना ठोस आकार ले लेता हैं।
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