Rishi Panchmi
(sama Pancham)
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भाद्रपद्र शुक्ल पंचमी को ऋषिपंचमी कहते हैं इसे सामा पाचम के नाम से भी जाना जाता हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऋषिपंचमी का व्रत स्त्री व पुरुष दोनों कर सकते हैं, परन्तु आज के समय में केवल यह व्रत महिला प्रधान ही माना जाता है।ऋषि पंचमी नेपाल में अधिक मनाई जाती हैं ।
रजस्वला अवस्था में स्त्रियों से घर के बर्तन आदि का स्पर्श हो जाने से लगने वाले पाप को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है। इस व्रत में मुख्य रूप से सप्तर्षियों सहित अरुंधती का भी पूजन किया जाता है।
ऋषि पंचमी से संबंधित कहानीयो मे से एक इस प्रकार हैं।
विदर्भ देश में एक उतंक नामक ऋषि अपनी पत्नी एवं पुत्र पुत्री के साथ रहता था। पुत्री का नाम सत्तमा था। पुत्री विवाहित थी। विवाह के केवल एक साल बाद उसके सास-ससुर की मृत्यु हो गई। कुछ समय बाद उसके पति की भी मृत्यु हो गई।
ससुराल में कोई भी नहीं था इसलिए सत्तमा अपने माता-पिता के साथ रहने लगी कुछ दिनों बाद वह जब बाहर पेड़ के पास सो रही थी तब उसके शरीर मे कीड़े पड गए।
जब उसके पिता को मालूम पडा तो ऋषि ने समाधी में जाकर अपनी पुत्री के पिछले जन्म को देख कर बोला कि पिछले जन्म मे सत्तमा ने रजस्वला धर्म का उसने ठीक से पालन नही कीया था।
अतः इसी पाप के फलस्वरूप उसे ये दंड मिला है। ऋषि ने फिर अपनी पुत्री को ऋषि पंचमी के व्रत को विधिव्रत करने की सलाह दी जिससे उसके इस पाप का निवारण हो सके।
महिलाएं इस दिन हल से उत्पन्न अनाज व सब्जी का भोजन नहीं करतीं सिर्फ एक समय भोजन कर सकते हैं। एवं भोजन में केवल कंदमूल का भोजन करती हैं इस व्रत में नमक का सेवन न करने का विधान है।
भारत के कई हिस्सों में कुछ ब्राह्मण, तथा माहेश्वरी एवं कायस्थ समाज परिवारों में ऋषि पंचमी के दिन राखी का त्यौहार मनाया जाता हैं।
Rishi pancham , Rishi pancham 2020 |
बहनें भाइयों की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधकर रक्षा का वचन लेती हैं। भाइयों की ओर से बहन बेटियों को वस्त्र, आभूषण और अन्य सामग्री उपहार के तौर पर दिए जाते हैं।
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