Thursday, August 27, 2020

Dharmdarshan ,Parivartini Ekadashi , Vamana Ekadashi ,Ekadashi

          

Parivartini Ekadashi, Vamana Ekadashi Vrat Katha 

        दोस्तों ,हिन्दू सनातन पंचांग के आधार पर देखा जाये तो वर्ष में 24 एकादशी आती हैं और अधिक मास को मिलाकर देखा जाये तो इसकी संख्या 26 होती हैं। एकादशी भगवान विष्णु को प्रिय मानी जाती हैं

     इसीलिए प्रत्येक एकादशी में लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं इन सभी एकादशी में से एक ऐसी एकादशी भी हैं जिसमे भगवांन विष्णु क्षीर सागर में करवट बदलते हैं


Lord Vishnu,Ekadashi,Parivartini Ekadashi
Lord Vishnu, Ekadashi

   
     इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं जो वामन एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं. आज हम आपको इसी परिवर्तिनी एकादशी के बारे में बताने जा रहे हैं

शास्त्रों के अनुसार देव शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निंद्रा में चले जाते हैं एवं देव उठनी एकादशी को जाग्रत होते हैं।

परिवर्तिनी एकादशी की कथा


       एक बार यधिष्ठिर श्री कृष्णा से अनुरोध करते हैं की भाद्रपद्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का महत्व एवं कथा सुनाने की कृपा करे   

    तब श्री कृष्णा ने कहा : हे धर्मराज ! पूर्व समय में बलिराज नाम का एक दानव था वो दानी ,सत्यवादी था ब्राह्मणो का बहोत सम्मान और सेवा करता था 

वो मेरा परम भक्त था।  उसने यज्ञ और धार्मिक कार्यो के प्राप्त पुण्यफल से स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया था इसीलिए वो देवताओ के लिए शत्रुरूप था।

इसीलिए देवताओ की विनती करने पर मेने वामन रूप धारण किया और बलिराजा के पास जाकर तीन पग धरती की मांग की

Lord Vamana, Vamana vataar, Vamana
Lord Vamana,Vamana Avataar

        बलिराजा ने जब संकल्प लिया तब मेने विराट रूप धारण करके केवल दो पग में संपूर्ण धरा को नाप ली। अंतिम पग के लिए पूछने पर बलिराजा ने अपना मस्तक आगे कर दिया।


उस पर पग रखने की प्रार्थना की मेंने उसकी प्राथना को स्वीकार करते हुए उसको पाताललोक में ले गया। 


वरदान मांगने का कहने पर बलिराजा ने कहा : हे प्रभु ! मुझे अपने चरणों सदा के लिए स्थान देने की कृपा करे।


मेने उसकी इच्छा को पूर्ण किया .मेने ये कार्य भाद्रपद्र मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को किया था। 

        इसीलिए इस दिन जो मनुष्य मेरे वामन सवरूप की पूजा करता हे उसे सहस्त्र अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता हैं।

उस मनुष्य को मेरे लोक में स्थान प्राप्त होता हैं.जो इस एकादशी का उपवास करता हे. उसे और कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती

इसी कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं .जो भी इस एकादशी के दिन दही एवं चावल का दान करता हैं उसे समस्त पापो से मुक्ति मिलती हैं।



हम आशा करते हैं की आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।



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